नमस्कार मित्रों। हमारी वेबसाइट Brahmand Tak में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों आज Maharana Pratap Jayanti के अवसर पर मैं आपको बताऊंगा भारतीय इतिहास के महानतम राजाओं में से एक हिंदू हृदय सम्राट और राजपूताना गौरव श्री महाराणा प्रताप और उनके जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं के बारे में। maharana pratap jayanti 2022, maharana pratap history, haldi ghati, battle of diver, maharana pratap in hindi, Mewar History, mewar, rajputana, samrat prthviraj Chauhan, Bappa Rawal, Samrat Mihirbhoj Pratihar, chhatrapati shivaji maharaj
Maharana Pratap
भारतीय इतिहास के महानतम राजाओं में से एक महाराणा प्रताप जी का नाम वीरता के पन्नो की पहली पंक्ति में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। उनकी वीरता और साहस का कोई सानी नहीं है। महाराणा प्रताप वीरता, त्याग और स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति है। अपनी मातृभूमि के स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सारा राजपाठ छोड़ कर जंगल में रहने वाले और स्वर्ण थालियों में सजे व्यंजनों को छोड़कर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप का जीवन युगों युगों तक संपूर्ण विश्व के लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। महाराणा प्रताप से ही प्रेरित होकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज की स्थापना की थी। महाराणा प्रताप भगवान तो नही हैं, मगर आज हमारे मंदिरों में भगवान महाराणा की वजह से ही हैं। और भारतीय जनमानस के लिए ऐसे वीर योद्धा और महान विभूतियां भगवान से कम भी नहीं है। अटल, अविजित, अद्वितीय 🙏🚩
Maharana Pratap Jayanti
हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया जी का जन्म भारतीय कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 को मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ। इस वर्ष महाराणा प्रताप जयंती 2 जून 2022 को संपूर्ण विश्व में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती प्रत्येक वर्ष 9 मई को मनाई जाती है। इसी वर्ष महाराणा प्रताप सिंह जी के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने सभी लोगो से निवेदन किया था की महाराणा प्रताप जी की जयंती भारतीय तिथि अनुसार ही मनाएं जो कि इस वर्ष 2 जून को है। महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह सिसोदिया तथा माता का नाम महारानी जयवंता बाई था। आज महाराणा प्रताप जी के जन्मोत्सव पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े साहस, शौर्य, और स्वाभिमान के किस्से सुनाएंगे।
1. अत्यधिक बलवान और पराक्रमी योद्धा
महाराणा प्रताप अत्यधिक बलवान राजा थे। 7.5 फुट के महाराणा, 80 किलो का भाला, 208 किलो की दो तलवारे लेकर और 72 किलो का कवच पहनकर युद्ध लड़ते थे। उनका यह युद्ध कौशल अद्वितीय था। अकबर के मन में महाराणा का इतना खौफ था कि वह अपने जीवनकाल में कभी महाराणा के सामने नहीं गया।
2. बहलोल खान का वध
बहलोल खान का कद 7 फुट 8 इंच था। वह इतना खूंखार था कि 2 दिन के जन्मे बच्चों को भी मार डालता था और नाश्ते में एक बकरा हजम कर जाता था। युद्ध में लूटी हुई महिलाओं में से कुछ महिलाएं बहलोल खान को दी जाती थी। अपने जीवन काल में बहलोल खान एक भी युद्ध नहीं हारा था। अकबर को बहलोल खान पर बहुत घमंड था। अकबर ने महाराणा का जिंदा या मुर्दा पकड़ कर लाने के लिए दिवेर के युद्ध में बहलोल खान को चुना था। परंतु बहलोल खान को भी भय था कि वह वापस लोटेगा या नहीं इसलिए उसने युद्ध में जाने से पहले अपनी सारी बेगमों को मार दिया ताकि उसके मरने के बाद कोई दूसरा उसकी बेगमों के साथ संभोग न कर सके। महाराणा जानते थे बहलोल खान महिलाओं और बच्चों के साथ क्या करता था। युद्ध में जब महाराणा ने बहलोल खान को देखा तो उस पर टूट पड़े। 2-3 मिनट तक दोनों का युद्ध चलता रहा, उसके बाद बहलोल खान ने महाराणा को कुछ अपशब्द बोल दिए थे, यही अपशब्द बहलोल खान के आखिरी शब्द बन गए। महाराणा की आंखे भगवामय अग्नि में लपलपा उठी और उन्होंने तलवार के एक वार से बहलाेल खान को घोड़े और लोहे के कवच सहित काट डाला। यह दृश्य देख अकबर की सेना सहम गई और मारे डर के इधर उधर दौड़ने लगी।
3. गुर्रिला युद्ध के जनक
महाराणा प्रताप को गुर्रीला युद्ध में महारत हासिल थी। उन्हें गुर्रिला युद्ध प्रणाली का जनक भी माना जाता है। महाराणा की सेना मात्र 3500 थी और अकबर की 10000। केसरिया पगड़ी बांधे राजपूत सैनिक विकराल काल का रूप धारण किए हुए रणभूमि में डोल रहे थे। उनकी नृत्य करती नंगी तलवारे एक वार में दुश्मन का सिर uda लाती थी। गुर्रिला युद्ध में दक्षता प्राप्त इस मेवाड़ी सेना ने 4000 मुगलों को काट डाला। राजा मान सिंह को छोड़कर अकबर के लगभग सभी सेनापति, सैयद हाशिम, सैय्यद अहमद खान, मुल्तान खान, गाजी खान, भोकाल खुरासान, और वसीम खान मारे गए। मान सिंह भी बाल बाल बचा था। युद्ध के ऐसे निर्मम दृश्य देखकर अकबर की सेना गोगुंदा की तरफ भाग खड़ी हुई। इसके बावजूद वामपंथी इतिहासकारों ने इस युद्ध को बेनतीजा बता दिया, जबकि हर प्रकार से यह मुगल सेना की हार थी। हालांकि थोड़े से समय के लिए मेवाड़ के कुछ किले मुगलों के कब्जे में रहे जहां से बाद में मेवाड़ी सेना ने उन्हे भगा दिया। इस युद्ध के पश्चात अकबर मान सिंह से काफी नाराज़ हुए और उनका दरबार में आने से मना कर दिया गया।
4. बैटल ऑफ दिवेर
1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको उन्होंने 'बैटल ऑफ दिवेर' कहा है, मुगल बादशाह के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था। इस युद्ध में महाराणा ने मुगल सेनापति बहलोल खां को तलवार से दो टुकड़ों में काट दिया था वही मेवाड़ी सेना की कमान संभाल रहे, महाराणा के पुत्र अमर सिंह ने एक अन्य मुगल सेनापति सुल्तान खां पर भाले का ऐसा वार किया कि भाला उसके शरीर और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धंसा। अपने सेनापतियो की ऐसी दुर्दशा देखकर मुगलिया सेना युद्ध के मैदान से भाग खड़ी हुई और राजपूतों ने उन्हे अजमेर तक खदेड़ा। इस युद्ध में 36000 मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। दिवेर के युद्ध ने मुगलों के मनोबल को बुरी तरह तोड़ दिया। दिवेर के युद्ध के बाद महाराण प्रताप ने गोगुंदा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, मोही, माण्डलगढ़ जैसे 33 महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया। सभी इतिहासकारों ने इस युद्ध में अकबर की करारी हार के बारे में लिखा है।
5. त्याग और स्वाभिमान
जब अकबर अपने हर प्रयास में असफल रहा तो उसने महाराणा को संदेश भेजा था कि राणा आप बस मुझे अपना राजा स्वीकार कर लीजिए बस अपना सम्राट मान ले उसके बदले में आपको आधा हिंदुस्तान देने के लिए तैयार हूं। तब महाराणा ने अकबर को संदेह भेजा की राणा मार सकता है , मिट सकता है पर झुक नहीं सकता। महाराणा के लिए स्वाभिमान सर्वोपरि था। महाराणा प्रताप ने कसम खाई थी कि जब तक वो मेवाड़ को सुरक्षित नहीं कर लेते तब तक बिस्तर पर नही सोएंगे और राजशाही खाना नही खायेंगे। और जब तक उन्होंने मेवाड़ को सुरक्षित नहीं कर लिया तब तक जमीन पर ही सोए और घास की रोटी तक खानी पड़ी पर अपनी मातृभूमि पर आंच नहीं आने दी। ऐसे महाराणा के चरणों में मेरा कोटि कोटि नमन।
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